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Jodhpur Case – Main

जोधपुर केस

सरकार की तरफ से कोर्ट मे पेश हुए 44 गवाह और बापू के पक्ष से पेश हुए 31 गवाहों मे से किसी एक ने भी कोर्ट में हुए अपने बयान में इस बात को स्वीकार नहीं किया कि उसने लड़की को बापू की कुटिया ( घटना की जगह ) में जाते देखा है | केवल और केवल लड़की और उसके माँ-बाप के सिवा ।

मेडिकल रिपोर्ट

बापू आशारामजी को आजीवन कारावास की सजा तथाकथित रेप और गैंगरेप में दी गयी है लेकिन लोकनायक अस्पताल, नई दिल्ली में आरोपकर्त्री की मेडिकल रिपोर्ट यह दर्शाती है कि रेप तो छोड़ो, किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ तक नहीं हुई, रिपोर्ट पूर्णतः नॉर्मल पायी गयी ।

  • No physical assault
  • No erythema
  • No bite marks
  • No swelling
  • No abrasion
  • No penetration
  • No loss of consciousness
  • Hymen intact
  • No physical assault
  • No erythema

15August 2013

तथाकथित घटना की रात करीब 9:00 से 12:00 बजे तक बापू आशारामजी 50-60 लोगों के बीच पहले सत्संग एवं बाद में मँगनी कार्यक्रम में थे । वहाँ उपस्थित व्यक्तियों की कोर्ट में हुई गवाही एवं उस समय के फोटोग्राफ इस बात की पुष्टि करते हैं । इस पुख्ता सबूत के विरुद्ध लड़की और उसके माता-पिता के बयानों के अलावा सरकार के पास कोई साक्ष्य (evidence) नहीं है ।

1.

15 अगस्त 2013 की रात लड़की तथाकथित घटना का समय बताती है, 10-10:30 से 11:30-12:00 तक का लेकिन लड़की से संबंधित कॉल डिटेल्स जो कोर्ट में साबित (proved) हैं, वे दर्शाते हैं कि लड़की उस समय फोन पर किसी संदिग्ध व्यक्ति के साथ संपर्क में थी अर्थात् लड़की तथाकथित घटना के स्थान पर थी ही नहीं, वह तो अपने परिजनों के साथ थी व फोन पर बात तथा मैसेजेस करने में व्यस्त थी । कोर्ट ने जजमेंट के पैरा नंबर 339 में यह बात स्वीकार भी की है ।

2.

बापू आशारामजी की निर्दोषता का यह सत्य जिस नम्बर की कॉल डिटेल्स से उजागर हो रहा था, जाँच अधिकारी ने उस नम्बर की पूरे अगस्त महीने की कॉल डिटेल्स रिकोर्ड प्राप्त किये थे लेकिन कोर्ट में प्रस्तुत करते समय 13 अगस्त से 16 अगस्त 2013 की कॉल डिटेल्स छिपायी । अर्थात् तथाकथित घटना के 2 दिन पहले एवं 1 दिन बाद तक की कॉल डिटेल हटाकर चार्जशीट में लगायी गयी । यह जानबूझकर इसलिए किया गया कि बापूजी की निर्दोषता सिद्ध न हो सके ।

3.

दिल्ली में FIR लिखते समय लड़की की विडियोग्राफी की गयी थी लेकिन वह कोर्ट के रिकॉर्ड पर नहीं है । संदेहास्पद तरीके से उस विडियोग्राफी को गायब कर दिया गया । इतना ही नहीं, लड़की के जोधपुर में हुए पुलिस बयान की विडियोग्राफी की रिकॉर्डिंग में भी कई स्थानों पर छेड़छाड़ की गयी । ये पुख्ता सबूत कोर्ट के सामने आने पर भी इनको अनदेखा किया गया ।

1.

15 अगस्त 2013 की रात लड़की तथाकथित घटना का समय बताती है, 10-10:30 से 11:30-12:00 तक का लेकिन लड़की से संबंधित कॉल डिटेल्स जो कोर्ट में साबित (proved) हैं, वे दर्शाते हैं कि लड़की उस समय फोन पर किसी संदिग्ध व्यक्ति के साथ संपर्क में थी अर्थात् लड़की तथाकथित घटना के स्थान पर थी ही नहीं, वह तो अपने परिजनों के साथ थी व फोन पर बात तथा मैसेजेस करने में व्यस्त थी । कोर्ट ने जजमेंट के पैरा नंबर 339 में यह बात स्वीकार भी की है ।

2.

बापू आशारामजी की निर्दोषता का यह सत्य जिस नम्बर की कॉल डिटेल्स से उजागर हो रहा था, जाँच अधिकारी ने उस नम्बर की पूरे अगस्त महीने की कॉल डिटेल्स रिकोर्ड प्राप्त किये थे लेकिन कोर्ट में प्रस्तुत करते समय 13 अगस्त से 16 अगस्त 2013 की कॉल डिटेल्स छिपायी । अर्थात् तथाकथित घटना के 2 दिन पहले एवं 1 दिन बाद तक की कॉल डिटेल हटाकर चार्जशीट में लगायी गयी । यह जानबूझकर इसलिए किया गया कि बापूजी की निर्दोषता सिद्ध न हो सके ।

3.

दिल्ली में FIR लिखते समय लड़की की विडियोग्राफी की गयी थी लेकिन वह कोर्ट के रिकॉर्ड पर नहीं है । संदेहास्पद तरीके से उस विडियोग्राफी को गायब कर दिया गया । इतना ही नहीं, लड़की के जोधपुर में हुए पुलिस बयान की विडियोग्राफी की रिकॉर्डिंग में भी कई स्थानों पर छेड़छाड़ की गयी । ये पुख्ता सबूत कोर्ट के सामने आने पर भी इनको अनदेखा किया गया ।

जब लड़की की तथाकथित घटनास्थल (कुटिया) में उपस्थिति सिद्ध करने के लिए कोई सबूत एवं गवाह नहीं था तब इन्वेस्टिगेशन एजेंसी को फुटप्रिंट या फिंगरप्रिंट जैसे फॉरेंसिक टेस्ट रिपोर्ट्स कोर्ट में प्रस्तुत करना अनिवार्य था लेकिन ऐसी कोई रिपोर्ट पुलिस द्वारा कोर्ट में प्रस्तुत नहीं की गयी । स्वयं इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर चंचल मिश्रा ने कोर्ट के सामने इस बात को स्वीकार भी किया है ।

पुलिस ने फॉरेंसिक टेस्ट रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत क्यों नहीं की ?

लड़की के आयुसंबंधी जितने दस्तावेज़ कोर्ट के सामने हैं उनमें जन्मतारीख भिन्न-भिन्न पायी गयी है जबकि POCSO एक्ट में लड़की का आयु निर्धारण सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू होता है । लेकिन बापू आशारामजी के केस में लड़की को बालिग सिद्ध कर रहे सारे प्रमाणित दस्तावेजों को नजरअंदाज करके एक ऐसे matriculation certificate के आधार पर सजा सुनाई गयी, जिसकी सत्यता कानूनी ढंग से प्रमाणित ही नहीं हुई । स्वयं लड़की के वकील ने CRPC की धारा 311 के तहत अर्जी लगाकर कहा था कि “हम इसकी सत्यता कोर्ट में सिद्ध नहीं कर पायें हैं” लेकिन जजमेंट में उसी अप्रमाणित दस्तावेज के आधार पर लड़की को नाबालिग मानकर बापूजी को सज़ा सुना दी गयी ।

लड़की के आयुसंबंधी जितने दस्तावेज़ कोर्ट के सामने हैं उनमें जन्मतारीख भिन्न-भिन्न पायी गयी है जबकि POCSO एक्ट में लड़की का आयु निर्धारण सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू होता है । लेकिन बापू आशारामजी के केस में लड़की को बालिग सिद्ध कर रहे सारे प्रमाणित दस्तावेजों को नजरअंदाज करके एक ऐसे matriculation certificate के आधार पर सजा सुनाई गयी, जिसकी सत्यता कानूनी ढंग से प्रमाणित ही नहीं हुई । स्वयं लड़की के वकील ने CRPC की धारा 311 के तहत अर्जी लगाकर कहा था कि “हम इसकी सत्यता कोर्ट में सिद्ध नहीं कर पायें हैं” लेकिन जजमेंट में उसी अप्रमाणित दस्तावेज के आधार पर लड़की को नाबालिग मानकर बापूजी को सज़ा सुना दी गयी ।

बिना अंदर गए लड़की ने कैसे दी

लड़की ने तथाकथित घटनास्थल (कुटिया) के अंदर का वर्णन न तो FIR में किया है न NGO के सामने हुए बयान में और न ही मैजिस्ट्रेट के सामने हुए बयान में...! यह वर्णन सबसे पहले आता है पुलिस के सामने हुए बयान में । अर्थात् लड़की को पुलिस को दिये गये बयान से पहले कुटिया के अंदर की जानकारी नहीं थी । अब सवाल उठता है कि उसे यह जानकारी कैसे लड़की के पुलिस स्टेटमेंट होने से 1 दिन पहले इस केस के तत्कालीन DCP अजय पाल लाम्बा अन्य पुलिसकर्मियों के साथ कुटिया पर गये थे और उन्होंने अपने मोबाइल से कुटिया के अंदर व बाहर की विडियोग्राफी की थी। यह तथ्य जोधपुर सूरसागर पुलिस थाने के रोजनामचे से प्रगट होता है ।

बापूजी के वकीलों द्वारा यह रोजनामचा कोर्ट के सामने रखते हुए यह दलील की गयी कि लड़की के पुलिस स्टेटमेंट होने से पहले पुलिस ने वहाँ जाकर कुटिया को देखा है जिससे स्पष्ट है कि पुलिस ने ही लड़की को कुटिया का विडियो दिखाया है और इसका प्रमाण है 22 अगस्त 2013 के दैनिक भास्कर में फ्रंट पेज पर छपा हुआ पुलिस कर्मचारी का कुटिया के अंदर का फोटो ।  लेकिन जोधपुर की विशेष अदालत ने जजमेंट में इस तथ्य पर अपना मत व्यक्त करते हुए कहा कि, ‘बचाव पक्ष के तर्कों में कोई सार नहीं है । यह सही है कि सूरसागर थाने का जाब्ता एवं थानाधिकारी मदन बेनीवाल मौके पर गये थे लेकिन उन्होंने घटनास्थल की विडियोग्राफी की हो या घटनास्थल का अवलोकन किया हो, ऐसा रोजनामचे से प्रकट नहीं होता है ।’

कोर्ट द्वारा बापू आशारामजी को आजीवन कारावास की सजा सुनाने के बाद तत्कालीन DCP अजय पाल लाम्बा ने आशारामजी बापू और इस केस के संदर्भ में एक किताब लिखी । बचाव पक्ष द्वारा इस किताब पर आपत्ति जताते हुए मानहानि की दलील देकर किताब के प्रकाशन को रोकने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में अर्जी लगायी गयी ।

यह वही सबूत है जिसे सेशन कोर्ट ने "सबूत नहीं हैं" कहते हुए जजमेंट में ठुकराया था । अब इस किताब से ये सबूत सामने आकर खड़ा हो गया । इन सभी तथ्यों को देखते हुए जोधपुर हाईकोर्ट अजय पाल लाम्बा को कोर्ट में उपस्थित होने हेतु सम्मन भेजती है । अजय पाल लाम्बा बीमारी व अन्य कई कारण बताते हुए कोर्ट में कई तारीखों पर उपस्थित नहीं होते और उसी दौरान अचानक हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डाली जाती है ।

सरकारी वकील सुप्रीम कोर्ट में यह दलील करता है कि इस किताब में डिस्क्लेमर है और यह नाटकीय रूप से लिखी गयी है इसलिए इसे सबूत के तौर पर न लिया जाए । सुप्रीम कोर्ट यह दलील मानकर हाईकोर्ट के निर्णय को ठुकरा देती है । एक ही किताब को एक तरफ ठोस सबूतों का संकलन और दूसरी तरफ काल्पनिक बताते हैं स्वयं इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर अजय पाल लाम्बा और आश्चर्य ! उनके दोनों विपरीत बयान दोनों कोर्ट में मान्य किये जाते हैं !

न्याय कहाँ मिलेगा ? star.png

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